दोस्त ही तो थे इतने अरसे से हम तुम
रहते थे अपनी इस दुनिया में ही गुम
कभी नादान सी बातों में दिन थे गुज़रते
कभी छोटी सी बात पर में लड़ते झगड़ते
इन रिश्तों के मायने कभी सोचे नहीं थे
कुछ लब्ज़ अनसुने जो बोले नहीं थे
वो बातों की मस्ती कुछ महंगी कुछ सस्ती
वो बचकानी शरारत वो डरती हुई हिम्मत
जब आँखें थी मिलती वो बात कुछ अलग थी
जब पलकें थी झपकती वो शर्त की वजह थी
दिल से कहता था दोस्त है वो मेरी
उसने भी मुझे बस दोस्त ही कहा था
फिर दिल से ही पूछा क्या वाकई ये सच है
दिल भी क्या कहता, अब वो मेरा कहाँ था
ये रिश्ते जब बदले कुछ आहट तों हुई थी
उन सरसराहटो को कोई समझ ही न पाया
एक लड़का एक लड़की और दोस्ती ही थी फिर
यूँ बीच में अचानक ये प्यार कहाँ से आया
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