भले ही नामंज़ूर कर फ़रियाद को हमारी
हम भी मुकद्दमों के सब पैंतरे जानते हैं
तेरे अक्स ने तो आखिर सराहा है हमको
तेरे अक्स को ही तेरा तसव्वुर मानते हैं
आग का है दरिया ये इश्क यूँ सुना है
हम जैसे परवाने ही ये दरिया फांदते हैं
हम भी हैं जिद्दी मिजाज़ से यूँ तो
कर ही लेते हैं जो दिल से ठानते हैं
न हम कोई बादशाह न ही कोई मसीहा
पर कम से कम खुद को दीवाना मानते हैं
माना ये हुस्न तेरा इस जहाँ का तो नहीं है
हम आशिकों के लिए भी लोग गलियां छानते हैं
इम्तिहान दिए है आज तक हजारों
तेरी आजमाईशों को एहसान मानते हैं !
प्रणय
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