रोया, हंसा, खिल-खिलाया

रोया, हंसा, खिल-खिलाया

ऊँगली पकड़ के चला,
गिरा, उठा ,फिर चला
सुनना,बोलना,पढना सीखा
कही फेल हुआ कही पास

रिश्ते बनाये, दोस्त भी
कुछ निभाए कुछ भुलाये
किसी को याद किया
कभी पाया कभी खोया

कभी अपनों को दूर जाते देखा
किसी अजनबी को पास आते देखा
कभी उम्मीद से परे मिला तो
कभी तमन्नाओं को टूटते देखा

लिखे-उतारे दिल में
जिंदगी के कुछ अनकहे तथ्य
कुछ मीठे झूठ, कुछ कटु सत्य
कुछ सीखा दूसरों की गलतियों से
कुछ बड़ों की सीख से
कुछ खुद की ठोकर से

इतना कुछ तो किया ज़िन्दगी में
जब थक के बैठा तो चेहरे पर मुस्कान थी
पर जब मुट्ठी खोली तो हाथ खाली
तो कहाँ गयी वो सीख
वो अनुभव, एहसास, वो ख्वाबों की दौलत

ढूंढा यहीं कहीं आस-पास
अभी तो था सब कुछ, गया कहाँ

फिर मिली
एक छोटी सी चीज़
एक छोटी सी बात
एक छोटा सा सच
यही सब तो जिंदगी है कि “मैं रोया, हंसा, खिल-खिलाया”

प्रणय

9 responses to “रोया, हंसा, खिल-खिलाया”

  1. यशवन्त माथुर Avatar
    यशवन्त माथुर

    कल 02/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    1. सादर धन्यवाद यशवंत जी !

  2. बेहतरीन प्रस्तुति

  3. यही तो जिंदगी है….
    बहुत-बहुत सुन्दर रचना…
    बेहतरीन….
    :-)

  4. अरुण कुमार निगम Avatar
    अरुण कुमार निगम

    ज़िंदगी, बस दूर से सिखलायेगी
    मुट्ठियों में क़ैद हो ना पायेगी
    सिर्फ इसको दिल से ही महसूसिये
    अक्स अपना दिल में ही दिखलायेगी.

    हृदय स्पर्शी रचना के लिए बधाई….

  5. सब कुछ यहीं रह जाता है …यह क्या कम है …की कुछ पल हंसी ख़ुशी के दे जाता है…एक सच्ची प्रस्तुति

  6. life ko samjh raha h dheree dheree………….awoosome expriance:)

  7. उत्साह वर्धक कमेंट्स के लिए आप सभी को धन्यवाद !

  8. बहुत सुन्दर रचना प्रणय जी…
    अनु

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