बैठा था नम रेत पर समंदर के किनारे
देख रहा था आती हुई लहरों को
हर लहर नयी थी पर
पुरानी लहर से मिलती जुलती
क्या अलग था ये मैं पहचान नहीं पाया
कभी देखा होगा तुमने भी
अपलक आँखों से
कुछ आते हुए पलों को
कुछ आती हुई लहरों को
फिर जब दोनों चले जाते हैं
कहाँ पता चलता है
जब जाती है लहर
ले जाती है कुछ ज़मीन पैरों के नीचे से
और दे जाती है कुछ तोहफे
कुछ काम के कुछ ख़ास कुछ यूँ ही
कुछ ऐसा ही वो पल भी तो करते हैं
जो दे जाते हैं
कुछ यादें कुछ बातें कुछ यूँ ही
मैं तो बस ढूंढ़ रहा था कोई अंतर
लहरों और पलों में
पर यूँ ही वक़्त बीत गया
कुछ ख़ास हाथ न लगा
सिवाय कुछ रेत के जो हाथों में रह गयी थी
और कुछ बात के जो यादों में रह गयी थी
प्रणय
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