कुछ गुनगुनाने को जी चाहता है !

आज यूँ मुस्कुराने को जी चाहता है
यूँ ही कुछ गुनगुनाने को जी चाहता है

तमन्ना है खुशियों को और सजाऊँ
गम का भी अपने मैं साथ निभाऊं
ये दुनिया भुलाने को जी चाहता है

इशारों में आँखों ने कर ली हैं बातें
ज़ज्बात हैं जो लबों पर नहीं आते
फिर भी कुछ बताने को जी चाहता है

एक अजीब सी ठंडक है शायद इस दिल में
है जैसे हर ख्वाब मेरे हासिल में
इस अम्बर पर छाने को जी चाहता है

हर सीप में से निकलता मोती नहीं है
ख्वाहिश सबकी पूरी होती नहीं है
वो मोती चुराने को जी चाहता है

हमें दिल की बात उनसे कहना न आया
इसलिए दिल में है उनको छुपाया
आज नदिया बहाने को जी चाहता है

लिखता हूँ एक दिन पढेगी ये दुनिया
कहता हूँ एक दिन सुनेगी ये दुनिया
कि नयी दुनिया बसने को जी चाहता है

यूँ ही कुछ गुनगुनाने को जी चाहता है

प्रणय

8 responses to “कुछ गुनगुनाने को जी चाहता है !”

  1. AApki likhi panktiyo ko bar bar dohrane ko ji chahta hai………………..

    Nice one……………………

    1. dhanyawaad…….!!!!!!!!!

  2. tere saath gujaare us har haseen lamhe ko phir se dohrane ko ji chahta hai…….mumkin h k wo mujhe bhul jaye iss janm me………….lekin h khushi “uski ” issi baat me………….to uski ye khwahish puri karne ko had se gujrane ko ji chahta hai……………………………

  3. bahut sunder , v rhythmic through out

  4. bahut bahut dhanyawaad……………

  5. जरुर पढेगी जरुर सुनेगी दुनिया प्रणय जी आपको
    इतना अच्छा लिखतें हैं कि इसे पढ़ने को सबका जी चाहता है…….

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