कुछ ख़ास नहीं बदला

मेरा झूला टूट गया है, पुराना लकड़ी का
जो था मेरे आँगन में नीम के नीचे
पीछे का मैदान जहाँ हम दिन भर खेलते थे
वो बूढ़े दादा जो चश्मा सम्हालते हुए
लकड़ी के सहारे खड़े होकर हमारा खेल देखते थे
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला

हमारे छोटे-छोटे हाथों में दस-बीस पैसे
जो बचा कर रखे थे कि दोपहर में कुल्फी वाला आएगा
वो झाड़ियों के झुण्ड में सेतूस के पेड़ के नीचे
कुछ पके सेतूस मिलने की ख़ुशी थी कहीं
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला

वो छुपम-छाई में हांडी फोड़ने के लिए
एक दुसरे की कमीज़ बदलना
कभी गीली रेती में सुरंग बना कर हाथ मिलाना
वो रात के अँधेरे में लोगों के पतरों पर पत्थर बजाना
और हाँ वो तालाब जहाँ ढेर सारे कमल खिलते थे
हम दिन भर जहाँ बैठ कर बस बातें करते थे
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला

वो लड़की जिसे मैं देख कर बस हँस दिया करता था
आगे के दो दांत जो नहीं थे उसके
और गर्मी की रातों में वो छतों की महफ़िल
कभी निभाया नहीं वो सुबह जल्दी उठने का वादा
कभी साईकिल से करतब दिखाते थे सड़कों पर
कभी गिरते तो हँसते थे अपने ही ऊपर
अब कुछ नहीं है वहां
और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला

प्रणय

10 responses to “कुछ ख़ास नहीं बदला”

  1. Pranay what a beautiful poem..”और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला”
    Bahut sudar rachna, aap toh shabdo ke jaadugar hai..itni khoobsurati se kitna kuch kah jaate hai :)
    wish you a lovely weekend :)

    1. सोमा जी ये आपका बड़प्पन है !!
      आपके कमेंट्स मुझे प्रेरित करते हैं !!
      धन्यवाद !!

  2. what a poem! God, you brought back the memories of my childhood. its an amazing poem.

  3. यादों की गठरी खोल कर कच्ची पक्की यादें छांटते हुये फ़िर से उन पलों को जीने की ख्वाहिश में मन में उठने वाली टीस का बहुत ख़ूबसूरत चित्रण किया है आपने अपनी इस रचना में… जो भी इस रचना को पढ़ेगा अपनी यादों की गठरी खोले बिना रह नहीं सकेगा ऐसा मेरा विश्वास है….
    सादर
    मंजु

  4. बदल गया जमाना और वो बदल गए,
    बीते हुए लम्‍हें हंसी यादों में ढल गए,
    क्‍या खूब बीता था वो बचपना मेरा,
    थे जो मासूस से चेहरे वो भी बदल गए।
    शानदार है यादों की अभिव्‍यक्ति। साधुवाद।

  5. bahut khoobsurat pankiya,bachpan ke din yad a gaye

  6. theconfidentguy Avatar
    theconfidentguy

    वो छुपम-छाई में हांडी फोड़ने के लिए
    एक दुसरे की कमीज़ बदलना
    कभी गीली रेती में सुरंग बना कर हाथ मिलाना
    वो रात के अँधेरे में लोगों के पतरों पर पत्थर बजाना
    और हाँ वो तालाब जहाँ ढेर सारे कमल खिलते थे
    हम दिन भर जहाँ बैठ कर बस बातें करते थे
    अब कुछ नहीं है वहां
    और लोग कहते हैं कुछ ख़ास नहीं बदला

    bahut khoob
    bachpan ki yaado ko samet liya aapne in panktiyo mein

  7. प्रणय आपकी रचनाओं में विषयों का वैविध्य और मनोभावों का सहज चित्रण पाठकों को सदैव प्रभावित करता है | आपकी लेखनी उतरोत्तर नए आयामों को छुए ,इसी शुभकामना के संग …

  8. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद !!
    आप सभी के इतने प्यारे कमेंट्स मेरे लिए एक पुरस्कार की तरह है !
    आशा है आप इसी तरह मुझे पुरस्कृत करते रहेंगे !

  9. वाह ! :)

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