कहीं कोई तमन्ना है न जाने कौन सी है वो
शायद है कोई पत्थर या केवल मोम सी है वो
वो लम्हा है या है पल, या इंतज़ार सदियों का
कुछ तो है शोर फिर भी मौन सी है वो
मेरे कहने पर वो थोड़ा मचल सी जाती है
उकसा दो जो सुनने को तो बस गुनगुनाती है
ज़मी पर भटकती है फिर भी व्योम सी है वो
कहीं कोई तमन्ना है न जाने कौन सी है वो
कभी वो खुल के बिखरेगी जैसे पराग फूलों का
दिल को छुएगी तोड़ कर बंधन उसूलों का
कोई हलचल उठा दे जैसे रोम-रोम सी है वो
कहीं कोई तमन्ना है न जाने कौन सी है वो
वो उड़ने को तडपती है, वो महुए सी महकती है
वो सागर की भी मस्ती है, जो लहरों सी छलकती है
मेरी मंजिल, मेरा प्यार, मेरी कौम सी है वो
कहीं कोई तमन्ना है न जाने कौन सी है वो
प्रणय
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