आवारा

चला दिल तोड़ के एक दिल , कि धड़कन थी यूँ आवारा
रातों में जगा पल-पल , कि सपने भी थे आवारा
निगाहें बन गयी कातिल , कि नज़रे ही थी आवारा
ढूंढते रह गए महफ़िल, कि तन्हाई भी आवारा

मेरे दिल पे मेरे मन पे काबू कर लिया ऐसे
जैसे जाती है कलियाँ खिल, कि वो भंवरा है आवारा

मेरी तमन्ना वो, मेरी तक़दीर भी वो ही
वो मेरी राह और मंजिल, कि राही भी है आवारा

उसकी होंठो की लाली, चाल हिरनी सी क्या जादू है
गालों पे वो काला तिल , कि जुल्फें भी है आवारा

तुझे देखा तो धड़कन थम गयी, नज़रे न हट पाई
गए होंठ ऐसे सिल, कि हर जज्बात आवारा

मेरी बातों में वो है और मेरी सांसो में भी वो ही
वो ज़र्रे-ज़र्रे में शामिल , कि रोम-रोम है आवारा

उसकी आँखे है सागर और मेरा इश्क है लहर
वो लहरों का है साहिल , कि मेरा इश्क आवारा
                                    प्रणय

2 responses to “आवारा”

  1. bahut khoob….
    hum to bus yun hi ho gaye aavara !

    1. धन्यवाद अलका जी !!
      आपकी कविताएँ पढ़ी, बहुत ही प्यारी लगी !!
      ब्लॉग पर स्वागत है आपका !!

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