तुम ये न जान पाए(उत्तर)

लबों की बातों को आँखों से बताया
मेने तो दिया इशारा, तुम ये न जान पाए

देखते हो मेरी आँखों की बेताबी
इंतज़ार है किसी का ये भी जानते हो
आँखों ने हरदम तुमको ही निहारा, तुम ये न जान पाए

देखती हैं आँखे मेरी जो तुमको
आँखों से नशा छलकता भी तो है
उस छलकते नशे को तुम भी तो पी रहे हो
तुम मदिरा का पिटारा तुम ये न जान पाए

मेरी परवाह और मेरी कुर्बान निगाहों को
चलो कम से कम जाना तो तुमने मेरी साँसों को
ये जान लो मेरे दिल की धड़कन भी है तुम्हारी
चूड़ी की खनक, पायल की छन-छन भी है तुम्हारी
तुम बिन सिंगार क्या हमारा तुम ये न जान पाए

ख्वाबों, खयालों, बातों और अदाओं में
चाहत, राहत और इबादत की दुआओं में
तुम ही तो समाए हो ये कैसे जताऊँ मै
खुली किताब है दिल अब क्या-क्या छुपाऊँ मैं
दिल के किसी कोने मे, मैं भी तो तुम्हारे हूँ
पर तुम्हे पहल नहीं गवारा तुम ये न जान पाए

प्रणय

8 responses to “तुम ये न जान पाए(उत्तर)”

  1. Beautiful Pranay..
    Har baat bin kahe hi pahuch jaati un tak to yah lab bekaar hi ho jaate..in aankhon ki padh lete woh toh aansu bekar hi rah jaate

  2. khuli kitaab hai dil… wow.. tats something very cute…

    maja aa gaya… hey pranay.. how r u bro??? nice read

  3. beautiful :)

  4. वाह! शब्दों का सुंदर चयन

  5. thanks to all for your valuable comments !!!!

  6. रूमानी अहसास…,सुन्दर रचना….

  7. thanks a lot for such great comments

  8. pehele sawal, fir ussi sawal ka jawab…. great :)

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