लबों से कहो या कोई इशारा तो दो
तुम्हे मुझ से प्यार है मैं कैसे मानूं ?
कभी तो बताओ कौन है ज़हन में
इंतज़ार में जिसके तुम आँखें बिछाती हो
मेरा ही इंतज़ार है मैं कैसे मानूं ?
देखती है आँखे तुम्हारी जो मुझको
इन आँखों में नशा कुछ बढ़ सा जाता है
नशे की लत है तुम्हे भी किसी के
पर ये मेरा ही खुमार है मैं कैसे मानूं ?
ये माना तुम्हारी परवाह है मुझ पर
ये माना कुर्बान निगाह है मुझ पर
सांसों में तुम्हारी रहता हूँ मैं ही
धड़कन में तुम्हारी धड़कता हूँ मैं ही
मेरे लिए ही ये सिंगार है मैं कैसे मानूं ?
रातों के ख्वाबों में, दिन के खयालों में
दबी सी बातों में, उलझे सवालों में
दिल की तमन्ना में, बेकरार चाहत में
यादों की फुर्सत में, बैचेन राहत में
इबादत में की गयी प्यारी दुआओं में
मैं ही शुमार हूँ मैं कैसे मानूं ?
प्रणय
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