मैं कैसे मानूं ?(प्रश्न)

लबों से कहो या कोई इशारा तो दो
तुम्हे मुझ से प्यार है मैं कैसे मानूं ?

कभी तो बताओ कौन है ज़हन में
इंतज़ार में जिसके तुम आँखें बिछाती हो
मेरा ही इंतज़ार है मैं कैसे मानूं ?

देखती है आँखे तुम्हारी जो मुझको
इन आँखों में नशा कुछ बढ़ सा जाता है
नशे की लत है तुम्हे भी किसी के
पर ये मेरा ही खुमार है मैं कैसे मानूं ?

ये माना तुम्हारी परवाह है मुझ पर
ये माना कुर्बान निगाह है मुझ पर
सांसों में तुम्हारी रहता हूँ मैं ही
धड़कन में तुम्हारी धड़कता हूँ मैं ही
मेरे लिए ही ये सिंगार है मैं कैसे मानूं ?

रातों के ख्वाबों में, दिन के खयालों में
दबी सी बातों में, उलझे सवालों में
दिल की तमन्ना में, बेकरार चाहत में
यादों की फुर्सत में, बैचेन राहत में
इबादत में की गयी प्यारी दुआओं में
मैं ही शुमार हूँ मैं कैसे मानूं ?

प्रणय

21 responses to “मैं कैसे मानूं ?(प्रश्न)”

  1. बहुत खूब सर!

    सादर

    1. धन्यवाद यशवंत जी !! आभार !!

  2. प्रणय जी, आपकी कविता अच्छी लगी……….

    1. धन्यवाद मधुसंची जी !

  3. Kya Baat hai Pranay bahut hi khoobsurat rachna :)

    1. आभार आपका सोमा जी !!

  4. O M G…such a romantic poem…..bas kho gaye khai’n aur padhte hi gaye…..

    मेरा ही इंतज़ार है मैं कैसे मानूं ?……behad touchy….

    1. धन्यवाद इंदु जी उत्साहवर्धक कमेंट्स के लिए !!

  5. अति सुंदर …

    1. धन्यवाद गौरव जी स्वागत है आपका ब्लॉग पर !!

  6. Awesome…………….
    I dream for a person who may be say this all to me………………..;););)

    1. thanks priyanka for lovely comments !!

    1. thanks sumukh ji !! welcome to the blog !!!!!!

  7. bahut sundar

  8. kya khoob sawalaat utthaye aap ne! bahut khoobsoorat laga mujhe padhne mein!
    shukriya!

    1. thanks a lot !! welcome to blog !!!!!

  9. manna toh hume padega pranay ji…. awosome lines… :)

    1. बहुत बहुत धन्यवाद !!!!

Leave a reply to sumukhbansal Cancel reply